भाषा एवं संस्कृति
भाषा :- प्राप्त अभिलेखों के अनुसार समस्तीपुर भूखंड की भाषा प्रारंभ में संस्कृत रही है| सामान्य जन को जब यह भाषा दुरूह लगने लगी तो महाकवि विद्यापति संपूर्ण भारत वर्ष में एक मात्र ऐसे युगान्तकारी, क्रांतिकारी युगद्रष्टा हुए, जिन्होंने संस्कृत को आमजन की भाषा मानने से इनकार कर दिया और जनभाषा, मातृभाषा-देसिल वयना के लिए कपाट खोल दिया| यही कारण है की संस्कृत पंडितो के विरूद्ध मोर्चा खोलने वाले महाकवि विद्यापति अन्य लोक भाषाओ लिए भी प्रेरक, पथ प्रदर्शक बन गए|
विद्यापति की कर्म भूमि समस्तीपुर थी, यहाँ अवहट्ट (अपभ्रंश) भाषा की बहुलता और लोकप्रियता थी| बाद में मिथिला भाषा व्यवहार में आने लगी| इसकी अपनी स्वतंत्र लिपि में ही ज्यादातर काम काज, लिखना-पढना, चिट्ठी-पत्री आदि प्रयोग में लाये जाते रहे, किन्तु, अब इस लिपि में लिखने वालो को प्राथमिकता नहीं मिलने के कारण कमी आ गयी है| यह सिर्फ उच्च शिक्षण संस्थानों में मैथिलि भाषा विषयक छात्रो को अनिवार्य रूप से अनुवाद लिखने के लिए कुछ अंक के प्रश्न पत्र दिए जाते है|
इसके अतिरिक्त यहाँ हिंदी, उर्दू, बंगला, पंजाबी, मारवाड़ी, बज्जिका आदि भाषा बोलने वालो की भी संख्या है| इनमे से कई भाषाये सिर्फ पारिवारिक संवाद में व्यवहृत होती है|
संस्कृति :- मानव जाति की उत्पत्ति के साथ ही रीति रिवाज़ भी जुड़े है| ये रीति रिवाज़ समाज को एक व्यवस्थित रूप देने के लिए बनाये गए है| उपनिषदों के द्वारा विभिन्न ऋषि-महर्षि ने इसे एक आधार दिया| आगे चलकर यह भारतीय जीवन की आधारशिला बन गए| इस क्षेत्र में प्रचलित कुछ संस्कारो का नीचे वर्णन किया गया है.
गर्भाधान :- यह एक धार्मिक संस्कार है, जिसे धर्मज संतान पैदा करने के लिए पति पत्नी द्वारा पारस्परिक सम्मति एवं विशिष्ट व्यवस्था के लिए किया जाता है|
पुंसवन :- गर्भ से केवल पुत्र की ही प्राप्ति हो, इसके लिए गर्भाधान के तीसरे महीने एक विशेष कृत्य |
जातकर्म :- बच्चे के जन्म के अवसर पर किया जाने वाला संस्कार| इसमें भी परिवर्तन हुआ है| लोगो में जन्म के छठे दिन छठी की पूजा का प्रचलन है |
नामकरण :- नाम रखने का संस्कार |
अन्नप्राशन – बच्चे को अन्न खिलाने का संस्कार |
चूडाकरण :- इस जनपद के लोग इसे मुंडन संस्कार कहते है, इसमें बच्चे का सर मुंडवाया जाता है, किन्तु शिखा को छोड़कर|
उपनयन :- कुछ जातियों में ही यह संस्कार है, इसमें शिखा सहित बाल मुंडवाया जाता है|
कर्णवेध – कान को छेदा जाता है, कनौसी पहेनने के लिए|
अन्य सामान्य संस्कार जो की सभी क्षेत्रो में प्रचलित है जैसे विवाह, अंत्येष्ठी इत्यादि |